
Kelobhoomi News | तमनार। तमनार-पुंजिपथरा मार्ग का वह पुराना पुल, जो अब तक लगभग 100 सालों से जन-जीवन का अभिन्न अंग रहा है, आज भी अपनी जर्जर स्थिति में किसी पुराने किस्से की तरह कायम है। लाखों रुपये की मरम्मत पर की गई मेहनत का नतीजा नाकाम रहा है – केवल खानापूर्ति के नाम पर एक ढोंग की मरम्मत! ऐसा लगता है कि पुल के मरम्माद में खर्च किए गए हर एक रूपये को तो भूल-भुलैया में खो दिया गया हो।गोढ़ी-आमाघाट पुल की स्थिति प्रशासन की नीयत और कार्यशैली पर बड़ा सवाल खड़ा कर रही है। लाखों रुपये खर्च कर पुल की खानापूर्ति मरम्मत तो कर दी गई, लेकिन बदहाल स्थिति जस की तस बनी हुई है। अब यह समझना मुश्किल हो रहा है कि पुल की मरम्मत हुई थी या सिर्फ सरकारी फाइलों में आंकड़े बढ़ाए गए थे।
स्थानीय लोगों की नाराजगी और चिंता अब चरम पर है, क्योंकि इस पुल से रोजाना ओवरलोडेड भारी मालवाहक वाहन गुजरते हैं। इसके कारण पुल की हालत दिन-ब-दिन और बिगड़ती जा रही है। जबकि तमनार क्षेत्र में दर्जनों कोयला खदानें और छोटी-बड़ी कंपनियां हैं, लेकिन पुल का उचित मरम्माद न होना एक अजीब विडंबना है।
यह विडंबना केवल तकनीकी लापरवाही तक ही सीमित नहीं है, बल्कि जिले के प्रशासन की जवाबदेही पर भी एक तीखा सवाल उठाती है। सवाल यह उठता है कि आखिर इस पुरानी ढांचे की सुरक्षा के लिए कितनी “समर्पित” प्रयास किए जा रहे हैं? क्या प्रशासन अपने खर्चों के हिसाब-किताब में इतनी गहरी चूक करने का जश्न मना रहा है कि जन सुरक्षा का मुद्दा उसे अब भी अनदेखा लगता है?
जब कि स्थानीय निवासियों ने और अधिक स्पष्ट कर दिया है कि मरम्मद कार्यों में भारी भ्रष्टाचार की आशंका है, तो प्रशासन की तरफ से कोई ठोस जवाबदेही देखने को नहीं मिल रही। यह केवल एक पुल नहीं है, बल्कि एक प्रतीक है उन व्यवस्थाओं का, जहाँ लाखों के खर्चों के बावजूद जनता की सुरक्षा और सुविधा को मात्र एक औपचारिकता के रूप में देखा जाता है।
यह समय है जब जिला प्रशासन को न केवल इस पुल की दुर्दशा पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि इस खर्चीले तमाशे की पूरी जाँच-पड़ताल कर, दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई सुनिश्चित करनी चाहिए। जनता की आवाज को दबाने की बजाय, इस विडंबनापूर्ण स्थिति का सामना करना और सुधारात्मक कदम उठाना ही सही रास्ता है।
“कोयले की नगरी, पर पुल अधूरा”
तमनार क्षेत्र कोयला खदानों और बड़ी कंपनियों से भरा पड़ा है। हर रोज़ करोड़ों का कोयला इस क्षेत्र से निकलकर देश-दुनिया तक पहुंचता है, लेकिन दुर्भाग्य देखिए, उसी कोयले से मालामाल होने वाला इलाका एक मजबूत पुल तक नहीं बना सका! यह ज़िम्मेदारी किसकी है? प्रशासन की? ठेकेदारों की? या फिर उस सिस्टम की जो “सब चलता है” के सिद्धांत पर काम कर रहा है?
प्रशासन से जवाब चाहिए!
इस पूरे मामले पर हिन्द मजदूर किसान पंचायत के जिला महासचिव उमेश कुमार श्रीवास ने कहा,
“हमने लोक निर्माण विभाग से पुल की मरम्मत में ट्रांसपोर्टर और प्रशासन द्वारा किए गए खर्च की जानकारी मांगी है। साथ ही, हमारी मांग है कि प्रशासन इस खर्च का पुनर्मूल्यांकन करे और यदि इसमें भ्रष्टाचार हुआ है, तो दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही की जाए।”
अब सवाल यह उठता है कि क्या प्रशासन इस मांग को गंभीरता से लेगा या फाइलों में यह मामला भी धूल खाता रहेगा? पुल की मरम्मत का पैसा किसकी जेब में गया, यह जांच का विषय है, लेकिन एक बात तो तय है – अगर जल्द ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो यह पुल किसी बड़े हादसे को न्योता दे सकता है।