सूत्रों के अनुसार, भाजपा ने इस बार फिर से श्रीमती गायत्री शत्रुघन बेहरा को अपना उम्मीदवार घोषित किया है। हालांकि, पार्टी के इस फैसले को लेकर क्षेत्र में कई तरह की चर्चाएँ तेज हो गई हैं। श्रीमती निशु भोजराम यादव को इस सीट के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा था, वहीं हाल ही में भाजपा में शामिल हुई श्रीमती सोनल ओमप्रकाश गुप्ता भी इस दौड़ में आगे थीं, लेकिन पार्टी में उनकी नई एंट्री ने उनके टिकट की संभावनाओं को कमजोर कर दिया।
क्या पार्टी की गलती दोहराएगी इतिहास?
भाजपा के इस फैसले के बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा हो रही है कि क्या पार्टी ने वही गलती दोहराई है, जो वर्ष 2015-16 के त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में हुई थी? उस समय पार्टी ने श्रीमती गायत्री शत्रुघन बेहरा को उम्मीदवार बनाया था, लेकिन युवाओं और ग्रामीणों की नाराजगी के चलते निर्दलीय प्रत्याशी कुमारी जितेश्वरी पटनायक को भारी समर्थन मिला था और उन्होंने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी।
ग्रामीणों की प्रतिक्रिया
क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि वर्तमान जनपद सदस्य चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र में सक्रिय नहीं रही हैं, जिससे जनता में असंतोष बढ़ा है। ग्राम गोढ़ी के ग्रामीण ने “हमने जिन्हें चुना, वे चुनाव के बाद कभी हमारी समस्याएँ सुनने तक नहीं आए। अगर इस बार भी वही प्रत्याशी खड़े होते हैं, तो हम एकजुट होकर नया उम्मीदवार चुनेंगे।”
सामारुमा के एक ग्रामीण, ने कहा, “भाजपा को जनता की आवाज सुननी चाहिए। हम चाहते थे कि इस बार कोई नया और सक्रिय व्यक्ति आए, लेकिन फिर से वही चेहरा सामने आया है। पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है।”
वहीं, युवा मतदाता ने कहा, “हम बदलाव चाहते हैं, विकास चाहते हैं। अगर भाजपा ने सही उम्मीदवार नहीं चुना, तो हम स्वतंत्र उम्मीदवार को जिताने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगे, जैसे 2015 में हुआ था।”
क्या भाजपा को पड़ेगा नुकसान?
स्थानीय जनता की प्रतिक्रिया को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि यदि भाजपा ने जनता की अपेक्षाओं को नजरअंदाज किया, तो इस बार भी निर्दलीय प्रत्याशी को समर्थन मिल सकता है। अब देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा के इस फैसले का असर चुनावी परिणामों पर कैसा पड़ता है और क्या इस बार भी इतिहास खुद को दोहराएगा या भाजपा की रणनीति कामयाब होगी?